Saturday, April 28, 2018

लोकतांत्रिक जनता दल स्थापना सम्मेलन


लोकतांत्रिक जनता दल
स्थापना सम्मेलन
18 मई 2018, तालकटोरा स्टेडियम, नई दिल्ली

राजनैतिक प्रस्ताव

लोकतांत्रिक जनता दल सम्मेलन में आए प्रतिनिधि मानते हैं कि देश चौतरफा संकट के दौर से गुजर रहा है। राजनीति कुछ कार्पोरेट घरानों एवं समाज में आधिपत्य जमाये सामाजिक समूहों के हाथों में सिमटती जा रही है। अन्याय, अत्याचार, शोषण, लूट और भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता जा रहा है। जनता तक सत्ता पहुंचाने का जो सपना आजादी के आंदोलन के दौरान शहीद हुए डेढ़ लाख से अधिक शहीदों और लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देखा था वह तिरोहित होता जा रहा है।

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 के चुनाव में अच्छे दिन से लेकर सबका साथ सबका विकास करने का वायदा किया था लेकिन उनकी सरकार की सभी घोषणाएं ढपोलशंखी एवं जुमलेवाजी साबित हुई हैं। किसानों की कर्जामाफी तथा डेढ़ गुना दाम देने का वायदा अभी तक पूरा नहीं हुआ है। 2 करोड़ रोजगार का वायदा करने वाली सरकार 20 लाख रोजगार भी सालाना नहीं दे पा रही है। नोटबंदी के चलते लाखों रोजगार में लगे लोग बेरोजगार हो गये हैं। काला धन वापस लाकर 15 लाख रुपये हर नागरिक के खाते में पहुंचाने का वायदा सरकार भूल चुकी है।

सरकार केवल पूरे देश को हिंदू-मुस्लिम के बीच बांटने, पूरे देश में भगवाकरण के काम में जुटी है। समाज के विभिन्न वंचित एवं अल्पसंख्यक समूह तनाव, असुरक्षा तथा हिंसा से पीड़ित हैं। गौ-रक्षा के नाम पर अल्पसंख्यकों की हत्याएं की जा रही हैं। लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा संवैधानिक मूल्यों पर लगातार कुठाराघात किया जा रहा है। न्यायपालिका को प्रभावित करने का सुनियोजित प्रयास किया जा रहा है, जिसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा है। केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दिया है। वायदे के अनुसार आजतक देश में लोकपाल और लोकायुक्तों की नियुक्ति नहीं की गयी है। ललित मोदी, विजय माल्या तथा नीरव मोदी को सुनियोजित तौर पर संरक्षण देकर देश से भगाना यह बताता है कि सरकार केवल कार्पोरेट को देश की आम जनता को लूटने की ही छूट नहीं दे रही बल्कि लुटेरों को भगाने के षडयंत्र में भी शामिल है।

केंद्र सरकार देश में संघीय ढांचे को कमजोर कर रही है। उसके खिलाफ दक्षिण के राज्यों को एकजुट होकर बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा है। स्थापना सम्मेलन दक्षिण के राज्यों के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने के लिए हर संभव प्रयास करने की घोषणा करता है।

केंद्र सरकार सुनियोजित तौर पर देश की विविधता को नष्ट करने का प्रयास कर रही है। सम्मेलन मानता है कि बहुलतावाद का सम्मान ही सच्चा लोकतंत्र है। सम्मेलन की मान्यता है कि देश की विविधता पर हमला राष्ट्रीय एकता, अखण्डता को कमजोर करने का सुनियोजित षडयंत्र है। इस षडयंत्र के खिलाफ शरद यादव के नेतृत्व में सांझा विरासत सम्मेलन किये गये हैं। इस तरह के सांझा विरासत सम्मेलन देश के सभी राज्यों में करने का निर्णय लेता है।

सत्तारूढ़ दल संवैधानिक मूल्यों पर लगातार हमला कर रहा है जिसके चलते लोकतंत्र खतरे में है। स्थापना सम्मेलन में आए साथियों ने लोकतंत्र को लाने और बहाल करने के लिए तमाम कुर्बानियां दी हैं। सम्मेलन ऐलान करता है कि वह लोकतंत्र पर कोई भी हमला बर्दाश्त नहीं करेगा तथा कोई भी समझौता नहीं होने देगा।

केंद्र सरकार ने समाज में ऐसे समूहों को ताकत दी है जो ऐतिहासिक तौर पर अन्याय से पीड़ित समूहों को इंसान मानने को तैयार नहीं है। सम्मेलन मानवीय मूल्यों का तिरस्कार करने वाले समूहों को चेतावनी देना चाहते हैं कि वे सामाजिक न्याय के रास्ते में बाधा पैदा करना बंद करें। सम्मेलन में आए प्रतिनिधि शपथ लेते हैं कि वे ज्यातिबा फूले, (जोतिबा) सावित्री बाई फूले, साहूजी महाराज, कबीर, गांधी, लोहिया, जयप्रकाश, बाबा साहेब अम्बेडकर, यूसुफ मेहरअली, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, चौधरी चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भेदभाव रहित समतापूर्ण समाज बनाने के लिए हर कुर्बानी देकर संघर्ष करेंगे। सम्मेलन मंडल कमीशन की सभी सिफारिशों को अक्षरशः लागू कराने के लिए संघर्ष का ऐलान करता है। सम्मेलन सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने के लिए विभिन्न राज्यों में कार्यक्रम आयोजित करने का ऐलान करता है।

केंद्र सरकार नकली राष्ट्रवाद के नाम पर नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं को नकार रही है। सम्मेलन सरकार की साजिश को विफल करने तथा जनता को मूलभूत आवश्यकताओं से जुड़ी समस्याओं को लेकर गोलबंद करने का निर्णय करता है। 

लोकतांत्रिक जनता दल मानता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, साफ पीने का पानी और रोजगार उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। केंद्र सरकार इन जिम्मेदारियों से पीछे हटती है। उसने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र का पूरी तरह निजीकरण करने का हर संभव प्रयास किया है जिसके चलते आम जनता शिक्षा और स्वास्थ्य की सेवाओं से पहले से अधिक वंचित होती जा रही है। स्वास्थ्य बीमा के नाम पर सरकार वाहवाही लूटना चाहती है लेकिन वास्तकिवता यह है कि जिस तरह से फसल बीमा योजना में 25 हजार करोड़ किसानों से प्रीमियम वसूल कर किसानों को 8 हजार करोड़ ही मुआवजा दिया गया, बाकी पैसा बीमा कंपनियों ने लूट लिया, वही स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में होने जा रहा है।

सम्मेलन बेरोजगारी की समस्या को देश के युवाओं के सामने सबसे बड़ी समस्या मानता है तथा इसे हल कराने के लिए काम के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल कराने की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी संघर्ष चलाने की घोषणा करता है।

चुनाव में पूंजी लगातार हावी होती जा रही है जिसके चलते आम राजनैतिक कार्यकर्ता का चुनाव लड़ना और जीतना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। लोकतांत्रिक जनता दल चुनाव सुधार को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। सम्मेलन चुनाव सुधारों को लागू कराने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराता है। ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर पूरा देश आशंकित है। ईवीएम की गिनती पर किसी को भरोसा नहीं है। इस कारण सम्मेलन चुनाव आयोग से अपील करता है कि वह ईवीएम की गिनती के साथ साथ वीवीपीएटी की पर्चियों की भी गिनती साथ साथ कराये, ताकि देश के मतदाताओं का चुनाव प्रक्रिया में विश्वास बहाल हो सके।

उक्त परिस्थितियों के चलते देश में निराशा का वातावरण बन रहा है। लोकतांत्रिक जनता दल इस निराशा को खत्म करने के उद्देश्य से बनाया गया है। सम्मेलन में आए प्रतिनिधि इस तथ्य को पुनः देश के समक्ष रखना चाहते हैं कि गत चुनाव में भाजपा को केवल 31 प्रतिशत मत मिले थे, अर्थात 69 प्रतिशत मतदाताओं ने केंद्र सरकार के पक्ष में मतदान नहीं किया था। इन मतदाताओं तक पहुंचने का सम्मेलन में आए प्रतिनिधि संकल्प लेते हैं, ताकि उन्हें देश के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों की जानकारी देकर गोलबंद कर सकें।

सम्मेलन मानता है कि देश में वातावरण बदल रहा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के लोकसभा के चुनाव नतीजों से यह स्पष्ट हो गया है कि देश का मतदाता केंद्र सरकार को बदलना चाहता है।

किसानों के बीच संपूर्ण कर्जामुक्ति और सभी कृषि उत्पादों का समर्थन मूल्य लागत से डेढ़ गुना तय करने के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार व्यापक एकजुटता दिखलाई दे रही है। इसी एकजुटता के चलते सरकार को भू-अधिग्रहण संबंधी अध्यादेशों को वापस लेना पड़ा है। 192 किसान संगठनों ने मिलकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के माध्यम से दो बिल तैयार कर राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन छेड़ा है, जिसका लोकतांत्रिक जनता दल समर्थन करता है। सम्मेलन को खुशी है कि 21 विपक्षी दल पहली बार मिलकर किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। हम देश के किसानों से अपील करते हैं कि वे किसान आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें। आज स्थापना दिवस के अवसर पर देश के किसानों से यह सम्मेलन वायदा करता है कि वह उनके साथ अब तक हुए ऐतिहासिक अन्याय को समाप्त करने के लिए हरसंभव सहयोग करेंगे।

केंद्र सरकार ने श्रमिकों के द्वारा लंबे संघर्ष बाद हासिल अधिकारों पर घातक हमला करते हुए श्रम कानूनों को कार्पोरेट के पक्ष में बदला है। श्रमिक संगठनों ने भी व्यापक एकजुटता बनाकर केंद्र सरकार को कड़ी चुनौती दी है। हमें खुशी है कि समाजवादियों के प्रतिनिधि श्रमिक संगठन हिंद मजदूर सभा द्वारा श्रमिक संगठनों की एकजुटता की अगुआई की जा रही है। स्थापना सम्मेलन में आए प्रतिनिधि हिंद मजदूर सभा को हर स्तर पर मजबूत करने का संकल्प लेते हैं ताकि मजदूर विरोधी नीतियों को बदला जा सके तथा श्रमिकों का सम्मानजनक एवं सुरक्षित रोजगार बचाया जा सके, साथ ही साथ नये रोजगार के सृजन हेतु नीतियां बनवायी जा सकें।

देश में छात्रों और युवाओं के बीच 1974 के बाद एक बार फिर एकजुटता देखी जा रही है। जेएनयू, एएमयू उस्मानिया विश्वविद्यालय के छात्र आंदोलन को जिस तरह से राष्ट्रविरोधी साबित करने की कोशिश की गयी उसकी यह सम्मेलन निंदा करता है तथा छात्र युवा आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान करता है।

अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण कानून में संशोधन के खिलाफ हुए राष्ट्रव्यापी विरोध से यह साबित हो गया है कि अब अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग जागरूक होकर संगठन बनाकर संघर्ष करने के लिए मैदान में हैं।
आर्थिक प्रस्ताव
एनडीए सरकार की नव-उदारवादी नीतियों की वजह से देश गंभीर आर्थिक संकट का समाना कर रहा है। इसके कारण किसानों को अलाभकारी मूल्य मिलता हैखेती की दुर्गति हो गई है और किसानो की आत्महत्या बढ गई है। इन्हीं नीतियों की वजह से महंगाई का बढना, उत्पादन में कमी, बेरोजगारी में वृद्धि तथा सरकारी कंपनियों में विनिवेश हो रहा है।  नोटबंदी अैार जीएसटी के कारण ग्रामीण तथा शहरी अर्थव्यवस्था तबाह हो गई है। इससे पूरे विकास में गिरावट आ गई है और कृषि, उत्पादन तथा सेवा, तीनों क्षेत्र में संकट और गहरा हो गया है।  नई आर्थिक नीतियांें से ऊपर के सिर्फ एक प्रतिशत लोगों का फायदा हुआ है और बहुसंख्यक जनता गरीबी और अभाव के दुष्चक्र में फंसी है। सत्ता में बैठी पार्टी ने 42 बडे़ वायदे किए थे जिसमें हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार, किसानों को उनके उत्पादन की लागत से 50 प्रतिशत अधिक और विदेशों में रखे काले धन को वापस लाने के वायदे शामिल हैं। लेकिन उसने एक भी वायदा पूरा नहीं किया।

  व्यापक आर्थिक परिस्थितियों पर नजर डालें तो सरकार ने स्वीकार किया है कि पिछले बजट साल की पहली छमाही में आर्थिक विकास दर में 1.5 प्रतिशत की कमी आई है। इस साल के संपूर्ण विकास दर के छह प्रतिशत होने का अनुमान है, लेकिन नोटबंदी के कारण बर्बाद हुई अनौपचारिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था  की जमीनी परिस्थितियों को देखने से इसे पाना संभव नहीं दिखाई देता है। अप्रैल से दिसंबर 2017 के बीच विदेशी कर्ज 495 अरब डालर और व्यापार घाटा 118 अरब डालर तक पहुंच गया है। हांलांकि विदेशी मुद्रा भंडार चार सौ अरब डालर का है, इसका बड़ा हिस्सा शेयर बाजार में निवेश है जो ब्याज दर के अस्थिर होने पर कभी भी वापस जा सकता है।  मुद्रा की कीमत 66 रूपया प्र्रति डालर हो गई है जबकि नोटबंदी के समय यह 63 रूपए प्रति डालर थी। इस वित्तीय साल में करपोरेट घरानांे को टैक्स में पांच लाख करोड़ रूपए की छूट दी गई है, वैसे इसे बजट अनुमानों में छोड़ दिया गया राजस्व बताया जाता है। छोडे़ गए राजस्व में कारपोरेट टैक्स में मिला प्रोत्साहन और माफी  तथा आयात कर तथा सीमा शुल्क में प्रोत्साहन तथा माफी शामिल हैं।
नरेंद्र्र मोदी के नोटबंदी तथा जीएसटी लगाने के दो फैसलों से आम लोगों को भारी परेशानी हुई है। नाटबंदी के कारण लोगों का अपनी मुद्रा पर से भरोसा उठ गया है। सरकार ने नोटबंदी के तीन लक्ष्य घोषित  किए थे-काले धन पर लगाम, जाली नोटों पर रोक तथा आतंकियों को मिलने वाले पैसे को बंद करना और भष्टाचार को भी खत्म करना भी। लेकिन वह इसमें बुरी तरह विफल हुई। जीएसटी के लागू होने से  अनौपचारिक क्षेत्र, जो भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य चालक हैबहुत हद तक बर्बाद हो गया है। बहुत सारे लघु तथा मध्यम उद्योग बंद हो गए हैं जिसके कारण रोजगार तथा आजीविका का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। जीएसटी को जल्दबाजी में लागू करने से संगठित क्षेत्र में भी समस्याएं पैदा हुई हैं।

ख्ेाती का  औसत विकास दर महज 1.7 प्रतिशत है। किसानों की आत्महत्या लगातार जारी है और केंद्र सरकार ने किसानांे के कर्ज माफी के लिए एक भी रूपया अलग से नहंी दिया है। दूसरी ओर, इसने पंजाब नेशनल बैंक से 13,500 करोड़ रूपए लूटने वालों को भाग जाने दिया। सरकारी बैंको ने कुल 60 लाख करोड़ रूपए का कर्ज दे रखा है जिसमें से दस लाख करोड़ रूपए दस सबसे बडे़ व्यपारिक घरानों को दिए गए हैं और उन्होंने उसे नहीं लौटाया है। इसे खराब कर्जा बता कर बट्टे खाते में डाल दिया गया है। इस सरकार के समय एक ओर, बैंको की नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) यानि वैसा कर्ज या एडवांस जो डूब गया हैबढता जा रहा है और दूसरी ओरबैंकों के घोटाले आम हो गए हैं। आर्थिक मामलों की शोध पत्रिका, ईपीडब्लू के एक अध्ययन के मुताबिक इस दशक में सुपर रिच यानि बेशुमार दौलत वालों की आमदनी 840 प्रतिशत बढी है। जाहिर है वे इससे काफी उत्साहित हैं। साल 1990 में जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद में खेती का योगदान 50 प्रतिशत था। यह अब घट कर 25 प्रतिशत हो गया है। खर्च से 50  प्रतिशत न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का प्रधानमंत्री का दावा खोखला है क्यांेकि किसान मजबूरन सरकार की ओर से घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर अपनी उपज बेच रहे हैं। बसु और नागराज के अध्ययन के मुताबिक इस सरकार के कार्यकाल में किसानों की आत्महत्या 43 प्रतिशत बढ गई है। पी साइनाथ महराष्ट्र को किसानों का कब्रिस्तान बताते हैं। किसानों  की आत्महत्या की मुख्य वजह कर्ज है। लेकिन किसानों के कर्ज में सुधार में सरकार कोई मदद नहीं करती है।

बजट आबंटन में हथकरघा या मछलीपालन जैसे परंपरागत क्षेत्रों की पूरी तरह उपेक्षा की जाती है। हथकरघा में करीब 43 लाख लोग लगे हैं, लेकिन, दिल्ली सालिडारिटी ग्रुप के मुताबिक, इस बार के केंद्रीय बजट में इस क्षेत्र का आंबंटन 15 प्रतिशत घटा दिया गया। इसी तरह सागरकिनारों पर तीन करोड़ 60 लाख रहते हैं जिसमें मछुआरों की हालत बेहद खराब है।

शिक्षा तथा स्वास्थ्य किसी भी सरकार के लिए प्राथमिकता के क्षेत्र होने चाहिए। लेकिन इस सरकार के कार्यकाल में शिक्षा पर सरकारी खर्च में लगातार कमी होती रही है और स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी के 1.2 प्रतिशत से ज्यादा नहंी है जबकि इसे जीडीपी का 2.5 से 3 प्रतिशत होना चाहिए। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर भी खर्च में कमी कर दी गई है, लेकिन योजना और गैर-योजना मद को मिला देने से यह सच्चाई छिप जाती है। सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों, जिसमें  प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना शामिल हैं, के आबंटन में कमी और उनके ठीक से क्रियान्वयन नहीं होने से ये कार्यक्रम संकट से जूझ रहे हैं।  खूब प्रचारित किए गए राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए कोई पैसा नहीं दिया गया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना इस सरकार की एक और बड़ी विफलता है। सरकार की सभी स्कीमें, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप, स्टैंड अप, मुद्रा  फ्लाप हो गई हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता संभालने के कुछ महीनों के भीतर तेल की कीमत 100 डलर प्रति बैरल से घट कर 40 डालर प्रति बैरल हो गई। लेकिन भारत में पेट्रोल की कीमत उस समय रिकार्ड रूप से ऊंची रही, जब तेल की कीमत 60 प्रति बैरल पर स्थिर था। पेट्रोल की कीमत का असर आवश्यक वस्तुओं की कीमत पर पड़ता है जिसके कारण महंगाई बढती है। तेल के क्षेत्र में निजीकरण से ब़डे़ एकाधिकार घरानों को फायदा हुआ और पेट्रोल तथा डीजल के दाम को रोजाना तय करने से तेल कंपनियों को भारी मुनाफा हुआ। यहां भी कारपोरेट घरानों की बल्ले-बल्ले और आम जनता का जम कर शोषण है।  पिछले पांच सालों में, पेट्रोल तथा डीजल पर उत्पाद शुल्क और टैक्स से सरकार को 19.61 लाख करेाड़ का राजस्व मिला है।  इसमें 11.48 केंद्र सरकार और 8.13 राज्य सरकारों को मिले हैं। लेकिन उपभाक्ताओं तक इसका फायदा नहीं पहुंचाया गया। इसका फायदा उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि पेट्रोल/डीजल बिना देरी किए जीएसटी के  अंदर लाया जाए।

वित्तीय घाटा पूरा करने के लिए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का बड़े पैमाने पर निजीकरण शुरू किया है। इस साल के बजट में एचएनल, कोचीन शिपयार्ड, एयर इंडिया के एक लाख रूपयों के शेयर बेचे जा रहे हैं। कोयला खदानों का भी निजीकरण किया जा रहा है ताकि और भी लूट हो सके। सार्वजनिक बैंक तथा बीमा जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का भी निजीकरण किया जा रहा है। इन सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं की ताकत के कारण ही भारत 2009 तथा 2011 की वैश्विक मंदी में अपने को बचा पाया। बैंक तथा बीमाओं के निजीकरण से इनकी अतिरिक्त पूंजी को विदेशी एकाधिकारियों को स्थानांतरित किया जाएगा।


इस तरह, अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में विफल हुई सरकार ने हर साल दो करोड़ रोजगार पैदा करने का वायदा किया था और दो लाख रोजगार भी नहीं पैदा कर पाई। इसके अलावा, हर नौकरी को ठेके की नौकरी बनाई जा रही है और श्रम कानूनों को बड़े व्यापारिक घरानों के हितों के हिसाब से बदला जा रहा है। युवाओं, कामगारों तथा किसानों में भयंकर असंतोष है। देश में बड़े पैमाने पर कामगारों, किसानों तथा व्यापारियों की हड़तालें हुई हैं। मौजूदा परिस्थितियों में लोकतंात्रिक जनता दल जैसी पार्टी देश में समावेशी और टिकाऊ विकास के लक्ष्य को पूरा कर सकती है। भूमि सुधार, सभी को शिक्षा तथा स्वास्थ्य, किसानों को उनकी उपज पर लाभकारी मूल्य, अच्छे मकान, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत करने और सबसे ज्यादा, मानव की गरिमा पर ध्यान केंद्रित कर यह विकास का एक वैकल्पिक एजेंडा तैयार करेगा। 

लोकतान्त्रिक जनता दल
सामाजिक प्रस्ताव
18 मई, 2018

लोकतान्त्रिक जनता दल के सामाजिक प्रस्ताव का प्रथम उद्देश्य संविधान प्रदत समता, बंधुता न्याय,  स्वतंत्रता, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के लक्ष्य को प्राप्त करना है.

संविधान निर्माताओं ने विशेष प्रावधान के जरिए सदियों से पीड़ित, महिला, पिछड़े, दलित और आदिवासियों के राजनीतिक और सार्वजनिक अधिकार सुरक्षित किए और सभी नागरिकों को सम्मान और स्वाभिमान से जीने का अधिकार दिया.

लेकिन संघ प्रदत भाजपा सरकार के पिछले चार साल के शासन से साबित हो गया है कि भाजपा को संविधान की मूल भावना में विश्वास नहीं है और वे संविधान बदल कर मनुस्मृति का शासन स्थापित करना चाहते हैं.  ऐसा क्या कुछ है जो नहीं हो रहा है भाजपा के शासन काल में: शिक्षा, स्वास्थ्य, रेल, प्लेन से लेकर तमाम सार्वजनिक संस्थाओं को निजी संस्थानों को बेचा जा जा रहा है, सहारनपुर से लेकर उना तक दलितों पर घृणित हमले हो रहे हैं, अल्प-संख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों की सार्जनिक हत्याएँ हो रही हैं, आदिवासियों के जल-जंगल ज़मीन तो लुटे ही जा रहे  हैं, नक्सल बताकर सामूहिक हत्या भी की जा रही है, किसानों पर गोली चलाए जा रहे हैं, मजदूरों का खून चूसा जा रहा है. सरकारी संरक्षण और भ्रष्टाचार से धन्ना सेठ और पूंजीपति मालामाल हो रहे हैं.  महिलाओं के प्रति अपराध की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है और सामंती अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि इन घटनाओं का विडियो बनाकर वायरल भी किया जा रहा है. ऐसा लग रहा है सरकार और उनके संगठन का इन अपराधियों को संरक्षण प्राप्त है. रोजगार के अवसर ख़त्म तो किए ही जा रहे हैं, संसद से लेकर नीचे स्तर के कार्यालय में ठेकेदारी प्रथा शुरू कर दी गई है. ठेकेदारी प्रथा ने वंचितों का आरक्षण समाप्त तो किया है, सामान्य मजदूर भी बिना किसी सुरक्षा के न्यूनतम वेतन से कम पर जीने को मजबूर हैं. सम्मलेन सभी उद्योग तथा श्रम सम्बन्धी विधान एवं सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान को पूरी शक्ति और सख्ती से लागू किये जाने की माँग करती हैं.

कुल मिलकर भाजपा सरकार के शासन काल में सामाजिक-आर्थिक विषमता और उत्पीड़न में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है.

अतः लोकतान्त्रिक जनता दल का यह सम्मलेन में सामाजिक और आर्थिक न्याय, दलितों और पिछड़ों का आरक्षण, अल्पसंख्यकों और महिलाओं की समुचित सुरक्षा और विकास, शिक्षा को बचाने एवं अंततः संविधान को बचाये रखने के लिए निम्नलिखित प्रस्ताव प्रस्तावित करती है :

1. प्रत्येक हाँथ को काम दिया जाए तथा सभी को रोटी कपडा और मकान एवं मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधा दिया जाए।
2. सामाजिक हिंसा, जातिगत भेदभाव, धार्मिक उन्माद से अशांति, कमजोर वर्गों का उत्पीड़न, और महिला एवं छोटे बच्चों का शोषण को सर्वोच्च सामाजिक सरोकार मानते हुए, यह सम्मलेन ऐसे कुकृत्य पर 'जीरो टॉलरेंस' प्रकट करते हुए, इनपर पूरे ताक़त एवं तत्काल प्रभाव से रोके जाने की मांग करती है।
3. यह सम्मेलन अबाध और विवेकहीन निजीकरण का विरोध करती है और निजीकरण के नाम पर समाप्त किये गए रोजगार के अवसर, सामाजिक न्याय के प्रावधानों सहित पुनर्जीवित करने की मांग करती है।  साथ ही, सरकारी विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों एवं सार्वजानिक क्षेत्रों के उद्योगों का निजीकरण तथा सरकारी एवं सार्वजानिक उपक्रमों में रिक्त पदों पर ठेके, अनुबंध और नियोजन पर नियुक्तियों को बंद करने की मांग करती है। ठेके और अनुबंध के आधार पर नौकरियां अनेक संघर्ष के बाद प्राप्त श्रम कानून, सामाजिक सुरक्षा एवं सहूलियत को समाप्त किये जाने का षड्यंत्र है। इसे तुरंत रोके जाने की मांग करती है।
4. देश के सभी संसाधन पर समाज के सभी वर्गों का हक़ है और संविधान एवं मंडल आयोग की अनुशंसाओं के अनुरूप देश के सभी संसाधन (निजी और सार्वजानिक) और उनके निविदा तथा कॉन्ट्रैक्ट में आदिवासी, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिए जाने की मांग करती है।
5. न्यायपालिका में हर स्तर पर दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों के लिए आरक्षण लागू करना प्रस्तावित करती है और सम्पूर्ण पारदर्शिता की मांग करती है।
6. बैंकों के ऋणों द्वारा स्थापित निजी क्षेत्र के उद्योगों में भी आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों को संविधान एवं मंडल कमीशन की अनुशंसाओं के अनुरूप 50 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की मांग करती है।
7. दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को प्रोमोशन में आरक्षण दिया जाए और रिक्त पदों को बैकलॉग से भरा जाए।
9. जनगणना आयुक्त के अधीन जातिगत गणना, तदनुसार दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों की स्थिति का आंकलन किये जाने की मांग करती है।
10. किसानों के ऋण को माफ़ किये जाने की मांग करती है।
11. विश्वविद्यालय फैकल्टी नियुक्ति में विभागवार रोस्टर प्रणाली के आदेश को रद्द करते हुए 200 पॉइंट रोस्टर पर सम्पूर्ण विश्वविद्यालय या महाविद्यालय को इकाई मानते हुए आरक्षण नियमों का पालन करते हुए नियुक्तियाँ की जाय।
13. देश में एक समान शिक्षा नीति लागू किया जाए तथा शिक्षा का व्यापारीकरण बंद किया जाए।
14. कृषि व किसान हित में स्वामीनाथन आयोग रिपोर्ट की संस्तुतियों को लागू करके किसान और उनकी फसल की लागत का ढेढ़ गुना समर्थन मूल्य दिया जाए।

जय भारत, जय संविधान


प्रतिरोध की आवाज 
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देश में संवैधानिक लोकतंत्र विफल:

जैसा की सर्वविदित है की जनता दल यूनाइटेड के विवाद के उपरान्त कार्यकर्ताओं के सामने पार्टी के साथ हो रहे असंवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है जिसका मामला न्यालय में लंबित है ऐसे में कार्य करने के लिए एक नए दल का गठन कार्यकर्ताओं ने किया है जिसका नाम चुनाव आयोग ने "लोकतांत्रिक जनता दल" आवंटित किया है जिसकी विधिक प्रक्रिया जारी है इसका स्थापना सम्मलेन 18 मई 2018 को तालकटोरा स्टेडियम नई दिल्ली में किया जा रहा है।  

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